Bharat ke Nirvachan Aayog ke karya likhiye-भारत के निर्वाचन आयोग के कार्य
हेलो दोस्तों में अनिल कुमार पलाशिया आज फिर आपके लिए एक महत्वपूर्ण लेख को लेकर आ रहा हु इस लेख में हम आपके लिए भारत का निर्वाचन आयोग के कार्य bharat ke nirvachan aayog ke karya likhiye से सम्बंधित जानकारी को हम इस लेख में देखेंगे जो किसी भी प्रतियोगिता परीक्षा के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण है
निर्वाचन आयोग की सरचना
संरचना
अध्यक्ष :- सुप्रीम कोर्ट का रिटायर्ड जज।
सदस्य :- मुख्य निर्वाचन आयुक्त (भारत निर्वाचन आयोग) तथा संबंधित राज्यों के निर्वाचन आयुक्त।
नियुक्ति / गठन :- राष्ट्रपति के आदेश द्वारा।
कार्यावधि :- परिसीमन कार्य संबंधी प्रतिवेदन राष्ट्रपति को सौंप कर आयोग का कार्यकाल समाप्त हो जाता है।
निर्वाचन आयोग के उद्देश्य
उद्देश्य :-
समानुपातिक जनसंख्या के आधार पर प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करना अर्थात संसदीय क्षेत्र (लोकसभा / विधानसभा) का इस तरह पुनः निर्धारण करना ताकि प्रत्येक समान जनसंख्या का प्रतिनिधित्व कर सके।
संसदीय सीटों के अंतर्गत भौगोलिक क्षेत्रों का न्यायपूर्ण विभाजन ताकि कोई राजनीतिक दल चुनाव में अवांछित लाभ प्राप्त नहीं कर सके।
“एक वोट - एक मूल्य” सिद्धांत को क्रियान्वित करना।
कार्य :-
संसदीय क्षेत्रों की संख्या और सीमाओं को जनगणना के आधार पर पुनः इस तरह परी समपित करना ताकि सभी लोकसभाई या विधानसभाई क्षेत्र समान जनसंख्या का प्रतिनिधित्व कर सके।
अनुसूचित जाति / जनजाति के लिए उनकी जनसंख्या के अनुपात में सीटों के आरक्षण की सिफारिश जहां में अधिसंख्य है।
भारत का निर्वाचन आयोग के कार्य
निर्वाचन क्षेत्र का परिसीमन करना :-
निर्वाचन - आयोग - निर्वाचन - क्षेत्रों का परिसीमन करता है। सन 1952 में सांसद ने परिसीमन आयोग अधिनियम पारित कर यह प्रावधान किया कि परिसीमन आयोग द्वारा प्रत्येक जनगणना (10 वर्ष) के बाद निर्वाचन क्षेत्र का सीमांकन किया जाएगा अध्यक्ष और दो अन्य सदस्य राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त किए जाते हैं।
निर्वाचक नामावली मतदाता सूची तैयार करना :-
राजनीतिक दलों को मान्यता प्रदान करना :-
निर्वाचन आयोग विभिन्न राजनीतिक दलों को मान्यता भी प्रदान करता है। राजनीतिक दलों को मान्यता प्रदान करने के लिए निर्वाचन आयोग कोई भी मानदंड निर्धारित कर सकता है।
1 दिसंबर 2000 से चुनाव आयोग ने चुनाव चिन्ह आरक्षण एवं आवंटन नियम 1968 में संशोधन का राष्ट्रीय और राज्य स्तरीय दलों की मान्यता की नए मापदंड निर्धारित किये।
चुनाव चिन्ह आवंटन :-
विभिन्न चावन को संपन्न करना :-
चुनाव रद्द या स्थगित करना :-
सांसद या विधायक को अयोग्यता के संबंध में परामर्श देना :-
आचार संहिता का निर्धारण करना :-
अन्य कार्य :-
आकाशवाणी तथा दूरदर्शन पर चुनाव प्रचार की सुविधा का अधीक्षण करना।
चुनाव याचिकाओं के संबंध में सरकार को सलाह देना।
उम्मीदवारों की चुनावी व्यय सीमा को निश्चित करना।
मतदाताओं को राजनीतिक रूप से जागरूक बनाना।
उपचुनाव करना
संवैधानिक प्रावधान :-
संविधान के अनुच्छेदों 80, 82, 170, 330 और 332 का संबंध संसदीय एवं विधान सभा क्षेत्रों के परिसीमन से है। इन अनुच्छेदों में 84 वे संविधान संशोधन अधिनियम 2001 को 87 वे संविधान संशोधन अधिनियम 2003 के द्वारा संशोधन किया गया था।
संवैधानिक संशोधनों की महत्वपूर्ण बातें निम्नलिखित है :-
- 1971 की जनगणना के आधार पर सभी राज्यों में विधानसभा सीटों की मौजूद कुल संख्या में 2026 के बाद होने वाली पहली जनगणना (2031) तक कोई बदलाव नहीं होगा।
- 1971 की जनगणना के आधार पर लोकसभा में विभिन्न राज्यों के लिए निर्धारित वर्तमान
कोई बदलाव नहीं किया जाएगा।
- प्रत्येक राज्य में 2001 की जनगणना के आधार पर संसदीय एवं विधानसभा क्षेत्रों का पुनः
- लोकसभा और राज्यसभाओं में अनुसूचित जातियों एवं अनुसूचित जनजातियों के लिए
- निर्वाचन क्षेत्र का इस प्रकार से पुणे परिसीमन किया जाएगा की एक राज्य में प्रत्येक
तक व्यावहारिक हो सके हर राज्य में समान हो।
संवैधानिक स्थिति :-
परिसीमन आयोग एक सांविधिक निकाय है।
यह बहुमत के आधार पर निर्णय करता है।
यह एक उच्च स्तरीय निकाय है, इसके आदेश कानून के समान मान्य है और उन्हें किसी भी न्यायालय में चुनौती नहीं दी जा सकती है।
इसके द्वारा जारी किए गए आदेशों को कानूनी शक्ति प्राप्त होती है और उन्हें किसी भी अदालत में चुनौती नहीं दी जा सकती। इसके आदेश राष्ट्रपति द्वारा निर्दिष्ट किसी तिथि को लागू होते हैं। इन्हें लोकसभा और संबंधित राज्य विधानसभा के समक्ष रखा जाता है किंतु इसमें संशोधन नहीं किया जा सकता है अब तक चार परिसीमन गठित किया जा चुके हैं।
राज्य निर्वाचन आयोग
73 वां संशोधन, 1992 के तहत अनुच्छेद 243 - K (अनुच्छेद 243 - ट) में राज्य चुनाव आयोग का प्रावधान है।
ग्रामीण निकायों के निर्वाचन व्यवस्था
( अनु. 243 - ट या 243 - K )
पंचायत - चुनाव के नियंत्रण निगरानी निर्देशन और मतदाता सूचियाँ तैयार करने संबंधी सभी शक्तियों धारा 243 - K के अधीन राज्य के चुनाव आयोग को सौंपी गई है।
चुनाव आयुक्त :-
एक सदस्य चुनाव आयोग का प्रमुख चुनाव आयुक्त होगा जो धारा 243 K के अधीन राज्यपाल द्वारा नियुक्त किया जाएगा और राज्यपाल ही उसकी पद शर्तें निर्धारित करेगा। परंतु ऐसा विधान मंडल द्वारा पारित कानून के अधीन होगा।
एक बार चुनाव आयुक्त की नियुक्ति हो जाने पर उसकी सेवा - शर्तों में ऐसा कोई अलाभकारी परिवर्तन नहीं किया जा सकता । उसको तब तक उसके पद से नहीं हटाया जा सकता जब तक वही कारण ना हो और वही प्रणाली ना अपनी गई हो जो एक उच्च न्यायालय के न्यायाधीश को हटाने के लिए अपनाई जाती है।
नगरीय निकायों की निर्वाचन व्यवस्था ( अनु 243 - यक या 243 Z A ) :-
अनुच्छेद 243 - ट (243 - K) मैं उल्लखेआईटी राज्य निर्वाचन आयोग नगरीय निकायों के चुनाव की भी व्यवस्था करेगा और इस हेतु मतदाता सचिया बनाएगा और उनका समय-समय पर संशोधन करेगा।
राज्य विधान मंडल इस संशोधन के अधीन रहते हुए नगरीय निकायों के चावन से संबंधित विभिन्न प्रावधान कर सकेगा।
निर्वाचन मामलों में न्यायिक हस्तक्षेप का निषेध ( अनुच्छेद 243 - ण या अनुच्छेद 243 - O ) : - पंचायत चुनाव के लिए चुनाव क्षेत्र निश्चित करने तथा इन चुनाव क्षेत्र के लिए सींटे आवंटित करने में हस्तक्षेप से न्यायालेयों को रोक दिया गया है । पंचायत चुनाव संबंधी विभाग चुनाव याचिका द्वारा किसी ऐसे अधिकारी के सम्मुख और ऐसे रीति से प्रस्तुत किए जाएंगे जिन्हें राज्य विधान मंडल निश्चित करेंगे।
सर्वोच्च न्यायालय द्वारा निर्वाचन सुधार अधिनियम अवैध घोषित :- 13 मार्च 2003 को सर्वोच्च न्यायालय ने जन प्रतिनिधित्व संशोधन (अधिनियम की धारा 33 - ख) को इस आधार पर रद्द कर दिया कि वह संसद की विधायी क्षमता से परे हैं। इस धारा में कहा गया था कि निर्वाचन आयोग के किसी भी आदेश के बारे में यदि न्यायालय कोई निर्णय देता है तो वह बाध्यकारी नहीं होगा तथा कोई भी प्रत्याशी ऐसी जानकारी अथवा सूचना देने के लिए बाधित नहीं है जो कि अधिनियम अथवा उसके अंतर्गत बनाए गए नियमों के अनुसार दी जाना आवश्यक नहीं है।
यह ध्यान देने योग्य है कि यदि कोई प्रत्याशी अपने शपथ पत्र में गलत जानकारी देता है तो यह लोक प्रतिनिधित्व नियम 1951 की धारा 125 (अ) के अंतर्गत अपराध माना जाएगा इसके लिए उसे 6 माह का कारावास अथवा जुर्माना या दोनों सजाए दी जा सकती है। यह बात ध्यान देने योग्य है कि प्रत्याशी द्वारा अपने शपथ पत्र में दी गई सूचना को चुनाव अधिकारी द्वारा प्रसारित करना आवश्यक है।
स्मरणीय तथ्य
1;-2009 के समान निर्वाचन के समय कुल 543 में से 499 लोकसभा क्षेत्र ऐसे थे जिन्हें परिसीमन किया गया था।
2;-चतुर्थ परिसीमन आयोग के अध्यक्ष न्याय मूर्ति श्री कुलदीप सिंह थे।
3;-अनुच्छेद 324 में संशोधन के द्वारा तथा उसे संदर्भ में जारी आदेशों के द्वारा चुनाव आयोग के कार्य
और शक्तियों में वृद्धि की जाती रही है।
4;-जन प्रतिनिधित्व अधिनियम 1950 के तहत मतदान की योग्यता, मतदाता सूचियां का निर्माण,
चुनाव क्षेत्र निर्धारण और सांसद तथा राज्य विधान मंडल में सीटों के बंटवारे के संबंध में चुनाव
आयोग को व्यापक शक्तियां दी गई।
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