My mother essay 1000 words मेरी माता
माँ क्या होती है
मेरी माँ my mother story निबंध - My mother Essay 2000 words
माँ क्या है इसकी कल्पना कोइ भी नहीं कर सकता है बस उसी पर आज का विषय है मेरी माँ .माँ जिसके पास है उसके पास खुदा है जिसके पास नहीं है उसके पास कुछ नहीं है
मेरी माँ प्रेमलता पलाशिया
में माँ के लिए कुछ लिखू इतना में ज्ञानी नहीं हु पर मेरी माँ जैसी कोई माँ नहीं हो सकती है दुनिया में सबसे अच्छी माँ वैसे पिता जी तो सबके सख्त होते ही है पर मेरे पिताजी की तो बात ही निराली है पर हम जानते है के पिता का सख्त होना ही जरुरी है अपने बच्चो के लिए।
प्रारम्भिक जीवन
नौकरी का समय
पत्थर मिटटी का मकान
मेरी माँ -my mother निबंध
वैसे जेसी मेरी नानी जी थी वैसी ही मेरी माताजी। मेरा नाम अनिल पलाशिया है मेरी माँ मेरे लिए आदर्श है ये समझलो इश्वर को तो नहीं देखा बस सब उनमे ही देख लिया। उन्हें देख कर लगता है इश्वर कितना अच्छा है जब माँ और पापा अपने परिवार से अलग हुए उस समय हमारे पास रहने के लिए छत भी नहीं थी एक छोटी सी कुटिया घास पूस की करिव 1995 के दशक में दो तीन बर्तन लेकर घर से अलग हुए पापा मम्मी फिर दुबारा दादा दादी के पास नहीं लोटे।
उस समय न पापा की नौकरी न मम्मी की नौकरी किसी के पास कुछ नहीं फिर भी हिम्मत नहीं हारी और साथ में हम दो भाई में और मेरा छोटा भाई बहुत जिद करने वाले।
मेरे पापा मजदूरी करते दिन रात और जैसे तैसे अपना घर चलाते पर उन्होंने मम्मी को कभी भी कोई काम नहीं करने दिया और हमारी हर जरुरत की पूर्ति करते गए।पर हर समय अच्छा रहे ऐसा कहा होता है पापा की वन विभाग में फारेस्ट आफिसर की पोस्ट पे नौकरी लग गई। कहते है जब व्यक्ति के पास कुछ नहीं होता है उस समय व्यक्ति बहुत कुछ मेहनत करता है वस् वही से मम्मी और हमारी लाइफ में विपरीत समय चालु हुआ जो 2015 तक रहा।
my mother story
पापा ने घर पर ध्यान देना बंद कर दिया । ये तो वो खुदा ही जनता है वैसे पापा घर पैसे तो देते पर उनके सारे पैसे न जाने कहा जाते . रोज लड़ाई झगड़ा बस घर में यही काम हमारी हालत और जयादा खराव होने लगी।
वहा से मेरी मम्मी का रोल चालु होता है हम संत राधास्वामी जी को बहुत मानते है मेरी मम्मी बस रोया करती और बाबाजी से प्राथना करती हमारी दसा कब सुधरेगी उस समय हम दोनों भाई की उम्र 10 /और 13 साल के करीब रही होगी।
रोज मालिक से अजदाज करती हे बाबाजी अब हमारा क्या होगा। मेरे बच्चे आगे कैसे बढ़ेंगे हमारे घर में तो दिन रात लड़ाई का ही काम है अब पापा जी ने नौकरी पे कभी जाते कभी नहीं जाते और एक दिन ऐसा भी आया।
जब 1999 में मम्मी की नौकरी टीचर में लग गई। मम्मी को ऐसा लगा उस परमेश्वर ने उनके जीवन की तपस्या को स्वीकार कर लिया। मम्मी की नौकरी हमारे नगर से 6 किलोंमीटर दूर गांव में लगी जहा पैदल जाना पड़ता था कभी पापा उन्हे साइकल से छोड़ते कभी में खुद उनके साथ जाता स्कूल उस समय में 5 वि में पड़ता था
नौकरी मिली साथ में अनेक चुनोतिया भी सामने आती गई। रोज पैदल या साइकल से स्कुल घर में भी काम उस समय 500 रु महीना वेतन मिलता था वेतन जो 10 दिन चलता पापा जी का खर्चा और बढ़ता चला गया। गलती उनकी नहीं संगति खराव थी उस समय पर मेरी माँ जानती थी ये मेरी परीक्षा का दिन है समय वो भी न रहा तो ये भी न रहेगा। बस उस मालिक को याद करके अपना काम करती चली जा रही थी
मम्मी ने ठान लिया था अब घास पूस की झोपडी में नहीं रहना बस मम्मी घर के पिच्छे से गड्डा खोदना चालू कर दिया स्कुल से जब भी समय मिलता मट्टी आखेटी करना। पापा ने पूछा ये किस लिए मम्मी का कहना बस अब मकान बनाएंगे वो भी मट्टी पत्थर का पापा ने देखा ये नहीं मानेगी फिर वो भी उनकी मदत करने लगे वो काम पे जाने से पहले खुद मट्टी खोद दे ते मम्मी को जब टाइम मिलता वो एक जगह आखेटा कर लेती।
हम दोनों भाई तो मामा के यहाँ गर्मी में चले जाते 2 महीने की गर्मी की छुट्टी से हम जब घर लौटते तो क्या देखते है के घास की झोपडी की जगह पर दो कच्चे कमरे पत्थर मिटटी के बने है हम दोनों भाई तो बहुत खुश पर बस यही सोचते रहते इतनी गर्मी में मम्मी ने ये काम कैसे किया होगा वो भी अकेले। जबकि पापाजी तो बस न जाने क्यों अपने कर्तव्य से भटक गए थे
बैसे मेरे पापा जी मम्मी का ख्याल बहुत रखते थे धीरे धीरे समय वितता गया हम तीन भाई अब बड़े भी होने लगे लेकिन वो समय जो वीता उस समय को जब भी हम याद करते है तो आखो में आंसू आजाते सायद हमारी परीक्षा 2015 तक बहुत ही रही उस बिच में ऐसे कई समय आये जिसमे हमें कभी कभी भूखा भी सोना पड़ा मेरी माँ ने हिम्मत नहीं हारी । वो एक बार स्कुल छुट्टी लेकर सोयाबीन काटने चली गई। पापा में भाई सब बहुत नाराज हुए पर नाराज होने से घर थोड़े चलता है नजाने पापा के लिए हमने उपबास किये , सरे ध्यान देवी देवता सब कोशिश कर ली पर पापा नहीं माने।
और एक दिन पापा की तवियत बहुत खराव हो गई हमारे पास एक रूपए नहीं पर पापा का इलाज करवाना भी है नजाने कितने रुपये उधार व्याज से लिए पापाजी को ठीक करा पर मेरे पापा भी पापा ही है कह दिया आज से में गलत रस्ते पे नहीं जाऊँगा . बस वो दिन के आज का दिन पापाजी कबी गलत रस्ते पे नहीं गए .अब तो बो इतना बदल गए के पूछो मत .
सायद ये मेरी माँ की तपस्या का ही फल है जो आज उन्हें मिला। तो आज दुनिया की सारी ख़ुशी उनके पास है आज हम तीनो भाइयो की सादी हो गई सब साथ रहते है मेरी माँ एक कड़ी है जिनने सभी बहुओ को बहु नहीं बेटी बनाकर रखा।
वो तो कहती है के मेरी बेटी नहीं है पर में बहु को अपनी बेटी बनाकर रखूंगी और मालिक ने तो ऐसी सुनी के उन्हें बहु नहीं बैटिया मिली जो उनके लड़को से भी ज्यादा वो ध्यान रखती है हा में कहता हु ये उनकी तपस्या थी जिसका फल उन्हें मिला। आज 15 /16 कमरे तीन मंजिलांजा मकान कही जाने के लिए कार , तीन मोटर साइकल जिस जिस चीज से हम तरसे थे वो सब आज हमारे पास है किसकी बजह से बस मेरी माँ की बजह से उनकी तपस्या से .
बैसे इस मुकाम तक पहुंचने के लिए घर के सभी लोगो का बहुत ही योगदान है हर एक व्यक्ति ने इस मुकाम तक पहुंचने के लिए बहुत सहयोग किया है
सभी को धन्यबाद
अनिल कुमार पलाशिया
जिसके होने से में खुद को मुकममल मानता हु में खुदा से पहले मेरी माँ को जनता हु
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