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चंद्रगुप्त मौर्य का इतिहास क्या है?

चंद्रगुप्त मौर्य का इतिहास क्या है? CHANDR GUPT MORY KA ITIHAS 

हेलो दोस्तों में अनिल कुमार पलाशिया आज फिर आपके लिए एक महत्वपूर्ण जानकारी को आपके लिए एक महत्वपूर्ण जानकारी को लेकर आ रहा हु इस लेख में हम आपको चंद्रगुप्त मौर्य का इतिहास क्या है? CHANDR GUPT MORY KA ITIHAS से सम्बंधित सभी महत्वपूर्ण जानकारी लेकर आ रहा हु जिसमे आप चन्द्रगुप्त मोर्य से सम्बन्धित सभी जानकारी को आप देखेंगे . 
  
चंद्रगुप्त मौर्य का इतिहास क्या है?

चंद्रगुप्त मौर्य का शासन काल

मोर्य साम्राज्य 

प्राचीन काल में जब जनपद का युग था उस समय सम्पूर्ण भारत में 16 जनपद थी जिसमे से एक जनपद मगध  थी . जो पुरे भारत की सबसे बड़ी जनपद थी सभी जनपद मगध के अधीन थी . चवथी शताब्दी के समय जब मोर्य काल का प्रारम्भ नहीं हुआ था उससे पहले नन्द वंश का शासन था . नन्द वंश का शासक घनान्द उस समय का सबसे क्रूर शाशक था घनान्द के शासन में बहुत ही कठोर दण्ड था वह कर [ टेक्स ] भी बहुत लेता था 

घनानन्द :- नन्द वंश 

महान सम्राट महापध्मानंद एक नन्द शासक था . जो एक महान शासक था उसके 9 पुत्र थे जिसे नवनन्द कहा जाता है . घनान्द महापदमानन्द का सबसे छोटा पुत्र था जिसने धोके से अपने पिता को मार दिया था . और इसके बाद घनानंद उस वंश का शासक बना . 
घनान्द एक लालची शासक था जो सिर्फ धन वतोरने का काम करता था उसने 80 करोड़ की धन सम्पति गंगा नदी में एक पर्वत के निचे छुपा दी थी . वह छोटी -बड़ी सभी बस्तुओ पर अनेक कर लगाकर जनता से कर बसुलता था . उसके शासन काल में चारो तरफ असंतोष फैल रहा था . 
उसी समय विदेशी आक्रमण कारी अलेक्जेंडर का सेनापति सेल्यूकस भारत में अपना विस्तार करना चाहता था .वह नन्द वंश के साथ मिलकर या उस पर अपना कब्ज़ा करना चाहता था . जैसे ही चाणक्य को इसकी जानकारी मिली वह तुरंत घनान्द के पास पंहुच गया और उससे कहा के तुम एक शक्ति शाली शासक हो और तुम विदेशियों को भारत से बाहर निकाल सकते हो . 
उस समय घनानन्द ने चाणक्य का बहुत अपमान किया और उसे अपने राज्य से बाहर निकाल दिया . चाणक्य ने घनान्द को चेतावनी दी  के वो एक दिन ऐसे सम्राट की खोज करेगा . जो पुरे भारत पर अपने  साम्राज्य की स्थापना करेगा . और तेरे राज्य को उखाड़ फेकेगा . 

चाणक्य के दुवारा चन्द्रगुप्त की खोज :- 

चाणक्य ने अपनी प्रतिज्ञा को पूरा करने के लिए अपनी तलाश जारी की और उसकी तलाश एक नव युवक चन्द्र के मिलने बाद समाप्त हो गई वह एक तेजस्वी और योग शासक के बनने का पूरा गुण रखता था चाणक्य ने उसमे वो  सभी गुणों देखे जो एक योग्य शासक में होने चाहिए . फिर उसे एक योग शाशक बनाने की प्रक्रिया में लग गया .  

मोर्य सम्राज्य की स्थापना :- 

चतुर्थ शाताव्धि ई . पु भारत का इतिहास में अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान रखता है यह ऐसा समय था जिसमे सर्वप्रथम भारत की एकता प्रदान करने वाले मोर्य सम्राज्य की स्थापना की गई . मोर्य सम्राज्य के संस्थापक चन्द्रगुप्त मोर्य थे जिनकी गणना भारत के महानतम सम्राट में से एक है मोर्य वश की स्थावंपना से पूर्व भारतीय इतिहास का समय अत्यंत स्पस्ट और विवाद ग्रस्त है मोर्य काल की जानकारी पुराणिक गाथाओं के साथ पोरानिक ग्रन्थ और सहितत्यक स्त्रोत , इमारत , स्तूप से भी मोर्य काल की जानकारी का पता चलता है इसी कारण चन्द्र गुप्त को भारत का प्रथम ऐतिहासिक सम्राट माना जाता है 


chandragupt mory


चन्द्रगुप्त मोर्य [ 322 ई . पु . - 298 ई . पु. ] चन्द्र गुप्त मोर्य का जन्म 

चन्द्रगुप्त मोर्य का जीवन परिचय 

चंद्रगुपत मोर्य का वंश और जाती के बारे में अनेक इतिहासकार का अनेक मत था अनेक लेखक ने जस्टिन ने चन्द्रगुपत को निम्न वंश का माना गया है और कुछ इतिहासकार इसे उच्च वंश का शासक माना जाता है . अनेक इतिहासकार इसे एक साधारण परिवार का व्यक्ति माना जाता है 

अनेक ग्रन्थ का मत :- 

1 . जैन धर्म :-
 जैन धर्म में कहा गया है की चन्द्रगुप्त मोर्य एक गाँव के मुखिया की पुत्री से उत्पन हुआ था और मोर्य उनकी जाती मानी  गई थी या फिर मोर उस गाँव में सबसे अधिक पाए जाते है इस कारण इसे मोर्य वंश की संज्ञा दी  है .

2 . ब्राह्मण साहित्य और विशाखदत ;-  

विशाखदत दुवारा रचित '' मुद्राराक्ष '' आदि के आधार पर चन्द्रगुपत को शुद्र माना गया है लेकिन इस मत को स्वीकार करना भी है की चन्द्रगुप्त ने अपने साम्राज्य विस्तार करने में चाणक्य की पूरी सहायता ली थी 

3 . बोध्य साहित्य में :- 
चन्द्रगुप्त को एक क्षत्रिय माना गया है बोध्य ग्रन्थ '' महावंश '' के अनुसार चन्द्रगुप्त को '' मोर्य '' नाम से जाना जाता है और यह भी माना  है की मोर्य वंश पिप्लिवन के स्वामी थे यह नेपाल में स्थित माना जाता है . बोध्य ग्रन्थ द्वीपदान में भी चन्द्रगुप्त को मोर्य और बिन्दुसार को क्षत्रिय माना गया है .  

प्रारम्भिक जीवन चन्द्रगुप्त मोर्य का जीवन परिचय [ चन्द्र गुप्त मोर्य का जन्म ]

चन्द्र गुप्त के जन्म के बारे में अनेक विद्वान का अलग अलग मत है की चन्द्र गुप्त का जन्म मुख्यता 345 ई . पु . में,, मुरा ,, नाम की स्त्री से हुआ था  उनके पिता मोर्य वंश के शासक या सरदार था . वह एक युद्ध में मारे गए थे इस कारण उनका परिवार घोर संकट में फस गया था . इतिहासकार का मानना है घनान्द से चन्द्रगुप्त के पिता का युद्ध हुआ था और घनान्द ने उसके पिता की म्रत्यु की थी .उसका पालन पोषण एक ग्वाले ने किया था इतिहासकार का मानना है की वह बचपन से ही होसियार थे बह अपने बचपन के मित्रो के साथ खेल -खेल में राजा की भूमिका निभाता था .  

चाणक्य जब एक ताकतवर और ज्ञानी व्यक्ति की तलास कर रहे थे उसी समय एक दिन चन्द्रगुप्त अपने मित्रो के साथ खेल खेल रहे थे तभी चाणक्य की नजर उस पर पड़ी और उससे बहुत ही प्रभावित हुआ . चाणक्य को जैसे गुणों वाला राजा चाहिए था वह सारे गुण चन्द्रगुप्त में थे . वस् चाणक्य उसे तक्षशिला ले गया और वहा जाकर उसे राजनेतिक और शास्त्र की शिक्षा दी . 
चाणक्य के प्रयास से चन्द्रगुप्त को घनान्द की सेना में भरती करा दिया गया बहुत समय तक चन्द्रगुप्त घनान्द की सेना में प्रमुख सेनिक रहा था . लेकिन कुछ विबाद होने के कारण बह सेना से हट गया था . घनान्द चन्द्रगुप्त की हत्या करना चाहता था . इस कारण चन्द्र वहा से भाग कर पंजाब चला गया . और चाणक्य के साथ मिलकर फिर घनान्द के खिलाफ आन्दोलन करना प्रारम्भ कर दिया . क्योकि चाणक्य और चन्द्रगुप्त दोनों का मुख्य उद्देश्य घनान्द को समाप्त करना चाहते थे . और भारत को एक सूत्र में बांध कर विदेशियों को भारत से भागना चाहते थे  

इस कारण चन्द्रगुप्त और चाणक्य दोनों ने मिल कर पंजाब और उसके आस पास के क्षेत्र को जित कर अपने सेनिको की भारती करता रहा . और धीरे - धीरे जंगलो में रहकर अपनी सेना गठित की . और घनान्द के खिलाफ जान बिद्रोह कर दिया . और धीरे धीरे उन्होंने घनान्द को पराजित कर के नन्द वंश का अंत किया . 
चाणक्य और चन्द्रगुप्त ने कई कठिनाईयो का सामना करके धीरे -धीरे अपने सेनिको की संख्या बढ़ाते गए और उनकी सेना में विदोह करके घनान्द को पराजित किया .    
 

चन्द्रगुप्त का सिंहासन [ चन्द्र गुप्त मोर्य का शासन ] 

चन्द्र गुप्त मोर्य सिहासन पर कब बैठे यह निश्चित समय का पता नहीं है अनेक इतिहासकार ने अनेक मत दिए . लेकिन बोध्य ग्रन्थ के अनुसार यह पता लगा है की चन्द्रगुप्त मोर्य का सिहासन 322 ई का माना गया है और अनेक इतिहासकार भी यही समय को मानते है . की चन्द्र गुप्त का राज्य सिन्हाषन 322 ई में प्राप्त हुआ था . 

चन्द्रगुप्त मोर्य की विजय अभियान :- 

चन्द्रगुप्त मोर्य के अन्दर एक कुशल सेनानायक और वीर योद्धा था . और उस के युद्ध कोशल को पहचानने वाले चाणक्य . दोनों का ही मकसद नन्द वंश का अंत करना था इस कारण चन्द्रगुप्त मोर्य ने सबसे पहले पंजाव प्रान्त में अपने राज्य का विस्तार किया . फिर धीरे धीरे वे आगे बड़ते गए और अपनी सेना का गठन करते गए . लेकिन इतिहासकार का मानना है की सबसे पहले चन्द्रगुप्त और चाणक्य दोने ने मगध पर आक्रमण किया . लेकिन वे सफल नहीं रहे . फिर वे धीरे - धीरे सबसे पहले पंजाब पर आक्रमण करना प्रारंभ किया .  

1 ] मगध पर प्रथम आक्रमण :- 

मगध पर चन्द्रगुप्त व चाणक्य दुवारा किये गए प्रथम आक्रमण के विषय में बोध्य ग्रन्थ महावंश में वर्णन किया गया है . महावंश के अनुसार चाणक्य ने चन्द्रगुप्त को एक शक्तिशाली सेना तैयार कर दी . इसके बाद उन्होंने गाँव और नगर को जीतते चलते आगे बड़े . इस प्रकार चन्द्रगुप्त की सम्पूर्ण सेना को घेर लिया और सेना का विनाश कर दिया . इस प्रकार आक्रमण विफल हुआ . 

2 . यूनानी शासन का उन्मूलन व पंजाब पर अधिकार :- 

चन्द्रगुप्त मोर्य और चाणक्य के दुवारा जब मगध पर अधिकार करने की योजना बना रहे थे उस समय उनकी सबसे पहली योजना पंजाब प्रान्त पर अपना अधिकार करना .पंजाब के अनेक जगह पर यूनानियो का प्रभाव था [ सिकंधर - का सेनापति सेल्यूकस ] का अधिपत्य था . और दूसरा मगध पर एक अत्याचारी शासक घनान्द को राज गधदी से हटाना यह दो काम चन्द्रगुप्त और चाणक्य के पास था और बस बे उसी काम में लगे थे . यह कार्य सरल नहीं था क्योकि उसके पास इसके लिए कोई धन नहीं था और न ही कोई सेना थी . ऐसा माना जाता है .की 322 ई के समय तक चन्द्रगुप्त ने सायद यूनानियो को हराकर पंजाब प्रान्त पर अपना अधिकार कर लिया था . 

मगध पर पुन आक्रमण :- 

पंजाब विजय से चन्द्रगुप्त की शक्ति अब ज्यादा बड गई थी और उन्होंने एक बड़ी सेना का भी गठन कर लिया था . अब उनका दूसरा लक्क्ष नन्द वंश के अत्याचारी शासक घनान्द को राज गद्दी से हटाना था . चन्द्रगुप्त और चाणक्य दोनों ने मगध पर सीधे ही आक्रमण किया . उन्होंने सीमान्त प्रदेशो को जितने का प्रयास पहले ही चन्द्रगुप्त ने कर लिया था .कुछ त्रुटी पूर्ण गलतियों के कारण असफल रहे . 
फिर दुवारा चन्द्रगुप्त और चाणक्य ने अपनी गलतियों को सुधार कर जो राज्य रास्ते में आते वह उन्हें जित ता चला गया . फिर धीरे धीरे उन्होंने पाटलीपुत्र को घेर लिया और नन्द वंश घनान्द की हत्या  कर दिया . और मोर्य वंश की स्थापना की .   

सेल्यूकस से युद्ध ;- 

नन्द वंस के पतन के कारण चन्द्रगुप्त मोर्य वहा के शासक वन गए अब मगध एक विशाल साम्राज्य बन गया था . और चन्द्रगुप्त अब अपने बिशाल साम्राज्य की सीमा का निर्धारण कर रहे थे उसी समय यूनानी सेनापति सेल्यूकस भी भारत में आगे बडने की कोशिश कर रहा था . इस अभियान में सेल्यूकस ने बेकट्रीय पर आक्रमण किया और उसमे सफल भी हुआ . इस सफलता के बाद सेल्यूकस भारत की और बड़ा . और 305 ई के समय सेल्यूकस सिधु नदी के तट पर आया और दोनों के बिच युद्ध हुआ . इस युद्ध में सेल्यूकस की बुरी हार हुई . इसमें चाणक्य ने सेल्युकर और चन्द्रगुप्त के बिच एक संधि कराई जिसमे . सेल्यूकस कभी अब भारत पर आक्रमण नहीं करेगा और सेल्यूकस की बेटी हेलना की शादी चन्द्रगुप्त से करवा दी  जिससे के कभी भी सेल्यूकस भारत पर आक्रमण नहीं करेगा . चन्द्रगुप्त ने उपहार स्वरूप सेल्यूकस को 500 हाथी उपहार में दिया था . 
इसके पश्चात सेल्यूकस ने मोर्य दरवार से सदेव मित्रतापूर्वक सम्बंद बनाये रखे और अपना एक राजदूत , जिसका नाम मेगस्थनीज था .को मोर्य दरवार में भेजा . जो पाटलिपुत्र में लम्बे समय तक रहा . मेगास्थनीज ने भारत के सन्धर्भ में एक पुस्तक की भी रचना की जो इंडिका के नाम से जानी जाती है मोर्य साम्राज्य के यूनान के साथ यह मैत्रीपूर्ण सम्बंद सेल्यूकस व चन्द्रगुप्त के उतराधिकारी के मध्य भी कायम रहे .  

चन्द्रगुप्त मोर्य का साम्राज्य विस्तार :-  चन्द्र गुप्त मोर्य का शासन 


चन्द्रगुप्त मोर्य के विजय विजय अभियान में उत्तर में हिमालय से दक्षिण में मैसूर तक व पश्चिम में हिन्दुकुश से पूर्व में बंगाल तक विस्तृत था अफगानिस्तान व बलूचिस्तान का विस्तृत भू - भाग सम्पूर्ण पंजाब , सिंध , प्रान्त  , कश्मीर , नेपाल , गंगा - यमुना का दोआब , मगध , बंगाल , सोराष्ट , मालवा , तथा दक्षिण - भारत के मैसूर तक का क्षेत्र चन्द्रगुप्त मोर्य के सम्राज्य के अंग थे . इतना विस्तृत साम्राज्य इससे पूर्व भारत में किसी राजा ने स्थापित नहीं किया था . 

चन्द्रगुप्त मोर्य के अंतिम दिन 

चन्द्रगुप्त मोर्य के अंतिम दिनो के विषय में जैन साहित्य से जानकारी मिलती है जैन साहित्य के अनुसार चन्द्रगुप्त ने जैन धर्म सीकर कर लिया था . चन्द्रगुप्त के शासन काल के अंत में पाटलिपुत्र में भयंकर अकाल पड़ा . ऐसे समय में जैन मुनि भद्रबाहु नए जैन धर्माव्लाम्बिन के साथ दक्षिण भारत की और प्रस्थान किया चन्द्रगुप्त भी शासन की भाग डोर अपने पुत्र के हाथ में सोप कर भाद्रवाहू के साथ श्रवन्गोला चला गया . और अपने अंतिम दिन दक्षिण भारत में जैन मुनियों के साथ यही विताया चन्द्रगुप्त की म्रत्यु 298 ई में यही पर हुई थी . 

चन्द्रगुप्त मोर्य का मुल्यांकन :- 

1 महान सेनानायक ;- चन्द्रगुप्त एक महान योद्धा और एक कुशल सेनानायक था . उसकी गणना भारतीय इतिहास में महान सम्राट और सेनानायक था . उसने अपनी सेना का गठन खुद किया था . अपनी योगता के कारण उसने यूनानियो को भारत से भगा दिया था . 

2 . महान सम्राज्य निर्माता :- . चन्द्रगुप्त मोर्य एक महान सम्राट के योध्या के साथ वह एक साम्राज्य निर्माता भी था अपनी सीमओं को बदने के लिए उसने हर समय प्रयास किया . और अपनी सीमाओं को बढाया था . उसने अपने साम्राज्य को भारत के साथ -साथ विदेशो में भी फैलाया था . वर्तमान के अफगानिस्तान , बलूचिस्तान , और भारत के अनेक राज्य में शासन फैलाया था . 
अफगानिस्तान , बलूचिस्तान , पंजाब , सिंध प्रदेश , कश्मीर , नेपाल , गंगा , - यमुना , दोआब , मगध , कश्मीर,  दक्षिण भारत के मैसूर तक राज्य फैला हुआ था .   

3 . कुशल प्रशासक :- वह एक कुशल प्रशासक  था चन्द्रगुप्त ने ही सर्वप्रथम कुशल प्रशासन की व्यवस्था की थी .उनकी वयवस्था इतनी अच्छी थी के अंग्रेजो ने भी उनकी निति का पालन किया था उनके शासन की यह व्यवस्था थी केन्द्रीय शासन और स्थानीय शासन की वयवस्था उसमे समाहित थी 

4 . लोक कल्याणकारी राज्य के संस्थापक :- चन्द्रगुप्त मोर्य के शासन का उद्देश्य लोककल्यान था लोककल्याण के उद्देश्य से उसने जनधारण आर्थिक और सामाजिक , राजनेतिक सभी पहलु पर ध्यान दिया . उसने कृषि व्यापार उद्योग पर विशेष वल दिया उसने किसानो , व्यापारियों की भरपूर मदद की और लोक कल्याणकारी राज्य की स्थापना की . 

लोक कथा : 

FCQ ;- 

Q ;- 1 चंद्रगुप्त मौर्य की कितनी पत्नियां थी

ANS ;- दुर्धरा , हेलना , और चन्द्र नंदनी 

Q ;- 2 चंद्रगुप्त मौर्य के दादाजी का नाम क्या था 

ANS ;- चंद्रसेन मोर्य 

Q ;- 3 चंद्रगुप्त मौर्य के कितने पुत्र थे 

ANS ;- चन्द्रगुप्त मोर्य की तिन पत्त्निया थी जिसमे से दुर्धरा से बिन्दुसार और हेलना से  जस्टिन पुत्र हुआ था 


चन्द्र गुप्त का विवाह घनान्द की वहन धुर्धरा से हुआ था जिससे बिन्धुसार का जन्म हुआ बिन्धुसार के जन्म के समय ही धुर्धरा की म्रत्यु हो गई थी जिसके कारण चन्द्रगुप्त की दूसरी शादी चाणक्य ने सेल्यूकस की पुत्री हेलना से किया . 

धन्यवाद 
अनिल कुमार पलाशिया 

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