प्राचीन भारतीय इतिहास के साहित्यिक स्रोतों का वर्णन कीजिए - Literary Sources of Ancient Indian History
हेलो दोस्तों में अनिल कुमार पलाशिया आपका अपने इस ब्लॉग में स्वागत करता हु आज हम अपने ब्लॉग में प्राचीन भारतीय इतिहास के साहित्यिक स्रोतों का वर्णन कीजिए prachin bharatiy itihas ke sahatyik strot ka varanan kijiye .से सम्बंधित सभी महत्वपूर्ण जानकारी को आपके सामने लेकर आ रहा इस लेख में हम आपको साहित्य स्त्रोत से सम्बंधित सभी जानकारी इस लेख में देखेंगे
प्राचीन साहित्य स्त्रोत
इतिहास जानने के साहित्यिक स्रोत
साहित्य स्त्रोत से हमारा आशय यह है की किसी भी देश की प्राचीन सभ्यता के बारे में जानना या फिर प्राचीन समय में देश में क्या हुआ था और उस समय देश में कोन विदेशी यात्री आये थे जिन्होंने देश में आर्थिक , सामाजिक , राजनेतिक , के बारे में लिखा है जिसके कारण आज हम उस समय की जानकारी को जान सकते हे के उस समय में क्या हुआ था . इन सब को जानना ही स्त्रोत कहलाता है .
प्राचीन भारतीय इतिहास के साहित्य स्त्रोत में विविधता तथा सरचनातमक प्रव्तियो के आधार पर इन्हें वाटा गया है
- वैधिक साहित्य [ व्राम्हन ग्रन्थ ]
- बोध्य साहित्य
- जैन साहित्य
- ध्र्मत्तर साहित्य
वैदिक साहित्य ;-
- इस क्षेणी में चार वेद , उनके उपवेद वेदांग , उपनिषद , ब्राम्हण ,आरण्य इत्यादि आते है पुराण , रामायण , तथा महाभारत को भी इसी साहित्यक स्त्रोत्रो की क्षेणी में राखा गया है ये ग्रन्थ प्राचीन भारत के धर्म तथा संस्कृतिक का विस्तृत स्वरूप सामने लाने में सक्षम है
- वेदों की संख्या चार है ये वेद श्रेग्वेद , यजुर्वेद , सामवेद , तथा आर्थ्वेद है ऋग्वेद सबसे प्राचीन बेद है इसमें 10 मंडल 1028 सूक्त तथा 10580 श्लोक है
प्राचीन भारतीय इतिहास के स्रोत Notes
वेद और उनके उपवेद
- ऋग्वेद - [ वेद ] = आयुर्वेद [ उपवेद ]
- यजुर्वेद -[ वेद ] = धनुर्वेद
- सामवेद [ वेद ] = गंध्र्वेद
- आर्थ्वेद [ वेद ] = शिल्प वेद
- वैन्दाग की रचना वैदिक काल के अंत में हुई थी ये वेदों के ही अंग है जो वेदों को सरलतम रूप में रखते है वेंदागो की संख्या 6 है ये है शिक्षा , कल्प व्याकरण ,निरुक्त , छंद तथा ज्योतिष .
- व्राह्मण ग्रन्थ की रचना ऋषियों दुवारा की गई ये वेदों की सरलतम तथा गधनात्मक व्यख्या है
- ऋग्वेद - ऐतरेय , कोषितिकी
- यजुर्वेद - तेतरिय , शतपत , ताण्डव
- सामवेद - पंचविश , जैमनीय
- अर्थववेद - गोपथ
- आरनय वेद की रचना ब्राह्मण वेद के बाद की थी इन ग्रंथो में आत्मा , म्रत्यु , जीवन तथा असांसारिक गतिविधियों से जुड़े विषयों की चर्चा की गई है वानप्रस्थी ऋषि - मुनियों दुवारा रचे जाने के कारण इन ग्रंथो को आरण्य कहा गया है आरण्य ग्रंथो को विभिन्य वेदों से जोड़ा गया है सामवेद तथा अर्थवेद का कोई आरण्यक ग्रन्थ नहीं है
- उपनिषद वैदिक ग्रंथो के अंतिम भाग है इसमें अध्यात्मक तथा दर्शन के गूढ़ रहस्यों का विवेचन हुआ है उपनिषद की संख्या 108 मानी गई है .
- भारत का आदर्श वाक्य , सत्यमेव जयते , मुण्डक उपनिषद से लिया गया है
- पुराण ऐतिहासिक तथ्यों की जानकारी के महत्वपूर्ण स्त्रोत है इनसे प्राचीन शाशको तथा राजवंशो के क्रियाकलापों का पता चलता है पुराणों की संख्या 18 है इनमे व्राह्मण , मत्स्य , भागवत , शिव , मार्कन्डेय , विष्णु , वायु , गरुण इत्यादि प्रमुख है
बोध्य साहित्य
प्राचीन भारतीय इतिहास के साहित्यिक स्त्रोतों में बोध्य ग्रंथो का स्थान महत्वपूर्ण है बोध्य साहित्य के तिन भाग है -
- जातक ,
- पीटक
- निकाय .
बुध्य के पूर्वज जन्मो का कथानक व्रतात्न्त है , जिसमे प्राचीन भारतीय समाज की प्रवृतिय का दिग्दर्शन होता है वर्तमान में 549 जातको की चर्चा मिलती है लेकिन माना जाता है की जातको की संख्या 550 थी जिनमे से 3 विनष्ट हो गया है . जातको की रचना पाली भाषा में हुई थी .
पिटक ;-
पिटको का बोद्ध साहित्य में अत्यनत महत्त्व है इनकी संख्या तिन है ये है विनयपिटक , सुतपिटक तथा अभिध्म्य पीटक इन पिट्को में बुध्य के सिधान्तो , वचनों का संग्रह किया गया है इनकी रचना महात्मा बुध्य के निर्वाण प्राप्त करने के बाद उनके शिष्यों दुवारा की गई . विनय पिटक में बुध्य भिक्षुको के आचरण सम्बन्धी विचार मिलते है सूत पीटक में महात्मा बुध्य के उपदेश्यो का संग्रह है जबकि अभिध्म्म्पितक बोध्य दर्शन का विवेचन करता है इन पिट्को को त्रिपिटक भी कहा जाता है त्रिपिटक की भाषा पाली है इन ग्रन्थों में बोध्य कालीन भारत की राजनेतिक , सामाजिक ,तथा आर्थिक जीवन के सम्बन्ध में महत्वपूर्ण जानकारियों का संग्रह है
महावंश और दीपवंश ;-
यह पाली भाषा में रचित महत्वपूर्ण बोध्य ग्रन्थ है जिनसे चोथी - पांचवी शताव्दी के ऐतिहासिक तथ्यों का पता चलता है अश्वघोष की रचना [ बुध्य चरित ] तथा नांगसेन की रचना मिलिन्दपाहो से तात्कालिन राजनेतिक तथा सांस्कृतिक प्रवर्तीय पर प्रकाश पड़ता है दिव्यदान संस्कृत में रचित बोधय ग्रन्थ है अन्य ग्रंथो में ललित विस्तार ; मंजू श्री मुल्क्ल्प महावस्तु इत्यादि प्रमुख है -
बोध्य धर्म
बोध्य धर्म की जानकारी का समबद्ध महात्मा बुध्य से है महात्मा बुध्य का जन्म 563 ई . पू . में
नेपाल की तराई में स्थित कपिलवस्तु के समीप लुम्बनी ग्राम में शाक्य क्षत्रिय कुल में जन्म हुआ था
इनके पिता का नाम शुध्होधन तथा माता का नाम महामाया था ,, जब उनका जन्म हुआ तो उसके
7 वे दिन महामाया की म्रत्यु हो गई थी इनका पालन पोषण उनकी मोसी प्रजापति गोतमी ने किया
था इसके बाद इनकी एक पत्नी यशोदरा एवं एक पुत्र राहुल था .
बोध्य धर्म की जानकारी
बुध्य ने 29 वर्ष की आयु में अपने गृह को त्याग दिया था ज्ञान की प्राप्ति के लिए .
35 वर्ष की आयु में बोध्य गया विहार में एक पीपल के पेड के निचे वैशाख पूर्णिमा की
रात्रि में उन्हें ज्ञान की प्राप्ति हुई .
महात्मा बुध्य ने अपना प्रथम उपदेशय सारनाथ में दिया था -म्रग्दावन पार्क
483 ई . पू में 80 वर्ष की आयु में इनका देहांत कुशीनगर में हुआ था .
गोतम बुध्य के जीवन की महत्वपूर्ण घटना
गृहत्याग की घटना - महाभिनिष्क्रमण
ज्ञान की प्राप्ति - सम्बोधि
प्रथम उपदेश्य देने की घटना - धर्म चक्र प्रवर्तन .
देहांत - महापरिनिर्माण
बोध्य धर्म ग्रन्थ
प्रथम बोध्य धर्म ग्रन्थ त्रिपिटक है .
पिटको की संख्या 3 है - विनय पिटक , सूत पिटक , एवं अभिधम्य पिटक .
विनय पिटक में बोध्य धर्म भिक्षुओ के अनुशासन सम्बंधित जानकारी डी गई है .
सूत पिटक में गोतम बुध्य के उपदेश्य है
अभिधम्य पिटक में बोध्य धर्म के दर्शन के बारे में है .
सूत पिटक में रखा गया है - जातक कथा . -संख्या - 549
जातक कथा में गोतम बुध्य के पूर्व जन्म के बारे में बताया गया है
महत्वपूर्ण बोध्य धर्मग्रन्थ - मिलिन्द पन्हो , दीपवंश , महावंश , महावस्तु , ललित विस्तार ,
बुध्य चरित ,
सारिपुत्र प्रकरण , दिव्यदान है .
बोध्य समितिया
इस लिक का प्रयोग करके आप इससे सम्बंधित MCQ को सोल कर सकते हो और आप यह
याद कर सकते हो के आपको कितने प्रश्न याद है
जैन साहित्य ;
- जैन ग्रंथो की रचना प्राकृत भाषा में मानी जाती है जैन साहित्य में आगमो को महत्वपूर्ण स्थान दिया गया है जैन आगम के अंतर्गत 12 अंग 12 उपांग 10 प्रकीर्ण तथा 6 छंद सूत्रों को शामिल किया गया है इन ग्रंथो का संग्रह 513 ई में किया गया था
- आन्चरांग सूत्र में जैन भिक्छुओ के आचार - व्यवहार का वर्णन है भगवती सूत्र में महात्मा महावीर स्वामी के जीवन से जुड़े प्राशंगो के बारे में कहा गया है भद्रबाहु चरित्र में चन्द्रगुप्त मोर्य के शाशन की घटनाओ का वर्णन किया गया है आवश्यक सूत्र में अजत्स्त्रु के धार्मिक कार्यो के बारे में कहा गया है .
धर्मोत्तर साहित्य ;-
- धर्मौत्तर साहित्य में धर्मसूत्र तथा स्म्रतियो का प्रमुख स्थान है इसकी रचना 6 टी शताव्दी में की थी
- अर्थशाश्त्र प्राचीन भारतीय इतिहास खासकर मोर्य प्रशाशन का स्पष्ट चित्रण है अष्टयअध्याय एक व्याकरण ग्रन्थ है इसमें 5 वि शताव्दी के समाज का वर्णन किया गया है .
- महाभाष्य की रचना मोर्योत्तर काल में किआ गई थी महाभाष्य में शुंग काल के पुष्प मित्र के शाशन का वर्णन किया गया है .
- ऐतिहासिक रचनाओ में सर्वाधिक महत्वपूर्ण कल्हण दुवारा रचित राजतरंगनि है इसमें संस्कृत साहित्य का वर्णन है
महत्वपूर्ण वेद की जानकारी ;-
- भारत का सार्व्प्राचिन धर्मग्रन्थ वेद है .
- वेद के सन्कलन करता कोन है . वेदव्यास .
- वेद चार होते है ऋग्वेद , यजुर्वेद , सामवेद , आर्थवेद
- चार वेदों को कहा जाता है सहिंता .
जैन धर्म
भारत में प्राचीन धर्म में एक जैन धर्म भी है यह सबसे प्राचीन धर्म है जिसके संस्थापक ऋसबवेद है
जो प्रथम तीर्थकर थे महावली स्वामी जैन धर्म के 24 तीर्थक माने जाते है और इन्हें जैन धर्म के
वास्तविक संस्थापक माने जाते है
महावीर स्वामी का जीवन परिचय
महावीर स्वामी का जन्म वैशाली के निकट कुण्डल ग्राम में 540 ई . पू में हुआ था इनके पिता का
नाम सिद्धार्थ था और माता का नाम त्रिशला था इनकी पत्नी का नाम यशोदा और उनके पुत्री का
नाम प्रियदर्शना था .
महावीर स्वामी को ज्ञान की प्राप्ति
30 वर्ष की उम्र में अपने भाई नन्दिवर्मन की आज्ञा से गृह त्याग दिया .
42 वर्ष की उम्र में जमेक ग्राम के ऋजु पालिका नदी के तट पर कैवल्य ज्ञान की प्राप्ति हुई .
कैवल्य की प्राप्ति के बाद उन्हें कई नामो से जाना गया - केवलिय , जिन [ विजेता ] , निर्ग्रन्थ
अहर्त [ योग्य ] आदि .
महावीर स्वामी की म्रत्यु 72 वर्ष की आयु में 468 ई . पू में उनका देहांत हो गया था
जैनधर्म ग्रन्थ
जैनियों के मूल सिन्धांत 14 आगमन में निहित है जिन्हें पूर्व में कहा जाता है बाद में इन्हें
परिविषित पर्वण , हेम्चान्द्रसुरी दुवारा लिखित ग्रन्थ है यह प्राकृत या अर्धमागधी भाषा में है .
जैन धर्म के 5 महाव्रत
सत्य , अहिंसा , आप्रिग्रह , अस्तेय , ब्रहाचर्य .
स्यादवाद ,, जैनधर्म का महत्वपूर्ण सिन्धात है
जैन धर्म के तिन ज्ञान के स्त्रोत माने गए है - प्रत्यक्ष , अनुमान एवं तीर्थकरो के वचन .
प्रमुख जैन समितिया
कुछ महत्वपूर्ण जानकारी
जैन धर्म श्वेताम्बर एवं दिगम्बर पन्थो में बता हुआ है श्वेताम्बर पंथ को मानने बाले शवेत
एवं दिगम्बर पंथ को मानने बाले वस्त्रो का परित्याग करते है .
जैन शिल्प के उधाहरण ;-
ऋग्वेद ;-
- रचनाओं के अध्यन को ऋग्वेद कहा जाता है इसमें 10 मंडल होते है एवं 1028 सूक्तिय है एवं 10462 रचना है इस वेद की रचना को पड़ने वाले ऋषि को होद कहा जाता है इस वेद से आर्य के राजनेतिक प्रणाली एवं इतिहास के बारे में जानकारी मिलती है .
- विश्वामित्र के दुवारा रचित ऋग्वेद के तीसरे मंडल में सूर्य देवता सावित्री को समर्पित है इसके 9 वे मंडल में देवता सोम का उल्लेख है .वावनाअवतार में तिन पग भूमि का उल्लेख ऋग्वेद में है .
- ऋग्वेद में इंद्र देवता के लिए 250 तथा अग्नि के लिए 200 रचनाओं की रचना की गई है .
यजुर्वेद ;-
- सस्वर पाठ के मंत्रो तथा बलि के समय अनुपालन के लिए नियमो का संकलन यजुर्वेद कहलाता है इसके पाठ करता को अध्व्य्रू कहते है .यजुर्वेद में यज्ञो के नियमो एवं विधि विधानो का संकलन यजुर्वेद कहलाता है इसमें गध और पद दोनों होते है .
सामवेद
- इस वेद में यज्ञो के लिए रचनाये पड़ी जाती है इस वेद में रचना और मंत्रो का संग्राह किया गया है साम वेद को भारतीय संगीत का जनक भी कहा जाता है .यजुर्वेद और सामवेद दोनों में से किसी में भी विशेष ऐतिहासिक घटना का उल्लेख नहीं है ;-
अथर्वेद ;-
- इस वेद में कुल 731 मन्त्र तथा लगभग 6000 पद है इसके कुछ मन्त्र बहुत ही प्राचीन है अर्थ वेद कन्याओ के जन्म की निंदा करता है विष्णु पुराण में मोर्य वंश के वारे में जानकारी मिलती है मत्स्य पुराण में आंद्र सातवाहनो का सम्बन्ध बताया है और वायु पुराण में गुप्त वंश की जानकारी मिलती है
- इसमें सामन्य विचारो और अंधविश्वास के बारे में बात कही है .इसमें मानव जीवन के सभी पक्षों गृह निर्माण , कृषि की उन्नति व्यापारिक मार्गो की खोज राजा का चुनाव ,शाप वाशिकर्ण के बारे में भी बताया गया है .
- सबसे प्राचीन बेद ऋग्वेद और सबसे बाद का वेद अर्थवेद है पुराणों की संख्या 18 है इनमे से कुछ पुराण महत्वपूण है जैसे ;- मत्स्य , वायु , विष्णु , ब्राह्मण ,एवं भागवत .
- पुराणों में मत्स्य पुराण सबसे प्राचीन पुराणों है .
- शतपथ ब्राह्मण में स्त्री को पुरुष का अर्धांग्नी कहा जाता है .जातक कथा में महात्मा बुध्य के पुराने जन्म की कहानी को रखा है .जैन साहित्य को आगम कहा गया है जैन धर्म का प्रारम्भिक इतिहास कल्पसूत्र में रखा है . अर्थशास्त्र के लेखक चाणक्य है इसमें मोर्य काल की सभी जानकारियों का संग्रह किया है .
- संस्कृत साहित्य में ऐतिहासिक घटनाओं को क्रम्वध लिखने का सर्वप्रथम प्रयास कल्हण ने किया . कल्हण दुवारा लिखी पुस्तक राजतरंगनी है .जिसका सम्बन्ध कश्मीर के इतिहास से है
- अरवो की सिंध विजय का वृतांत चचनामा [ लेखक - अली अहमद ] में सुरक्षित है .
- अष्टाध्याय [ संस्कृत भाषा व्याकरण की प्रथम पुस्तक के लेखक पाणीनी है
- पंतजलि पुष्यमित्र शुंग के पुरोहित थे इनके महाभाष्य से शुंगो के इतिहास का पता चलता है . .
भारत की प्राचीन जानकारी
- प्राक ऐतिहासिक काल का समय है - पाषाण काल से हडप्पा सभ्यता
- अद्ध्य ऐतिहासिक काल का समय है - हद्दपा सब्यता से 600 ई . पु .
- भारत में ऐतिहासिक स्त्रोत को जाना जाता है -पुरातात्विक , साहित्यिक
- पुरातात्विक स्त्रोत जानने के प्रमुख स्त्रोत है - अभिलेक , स्मारक , मुद्राये
- अभिलेखों के अध्यानो को कहा जाता है - अभिलेखाशास्त्र
- पुरातात्विक अभिलेख को अध्यन किया जाता है - देशी अभिलेख
- अभिलेखों में में जानकारी मिलती है - साम्राज्य विस्तार , शासन प्रवंध
- प्राचीन भारतीय अभिलेख की जानकारी है .
- बैग्जाकोई अभिलेख प्राप्त हुआ है - एशिया मईनार
- बैग्जाकोई अभिलेख से जानकारी प्राप्त होती है - वैदिक देवता , इंद्र , वरुण ,
- इरान से प्राप्त अभिलेख नक्श - ए- रुस्तम अभिलेख जानकारी मिलती है - प्राचीन
- प्राचीन स्मारक में आते है - भवन , मंदिर , स्तूप , तथा विहार .
- मुद्राओ के अध्यन को कहा जाता है - मुद्राशास्त्र
- किस शासक को विणा बजाते हुए मुद्रा पर अंकित है - समुद्रगुप्त .
- समुद्र गुप्त को माना जाता है - विणा वादक बजाने बाला .
- समुद्र गुप्त मानता था - संगीत को - संगीत प्रेमी था
- समुद्रगुत के सिक्को पर जानकारी मिलती है - अश्वमेघ और शिकार प्रेमी
- प्राचीन काल की मोहरों से पता चलता है - हडप्पा सभ्यता के
- हडप्पा सभ्यता की प्रजाति , धार्मिक, - सामाजिक की जानकारी मिलती है - मूर्तियों से .
- साहित्यक स्त्रोत की जानकारी मिलती है -
- वैदिक साहित्य में पाए जाते है - चार वेद , उनके उपवेद , , वेदांग , उपनिषद ,
- साहित्यिक स्त्रोत में माना जाता है - रामायण , महाभारत , और पुराण .
- वेदों की संख्या मानी जाती है - 4
- वेद है - यजुर्वेद , सामवेद , ऋगवेद , अर्थवेद .
- सबसे प्राचीन वेद है - ऋगवेद.
- ऋगवेद में पाए जाते है - 10 मण्डल , 1028 सूक्त तथा 10580 श्लोक पाए जाते है .
- वेद और उनके उपवेद मने जाते है -
वेदांगो की संख्या मानी जाती है - 6
प्रमुख वेदांग है - 6 शिक्षा , कल्प , व्याकरण , निरुक्त , छंद तथा ज्योतिषी .
वेद और उनसे जुड़े प्रमुख ब्राहमण ग्रन्थ .
- आरण्यक ग्रन्थ में पाए जाते है - आत्मा , म्रत्यु , , जीवन , तथा असांसारिक गत्विधियो
- जुड़े विषय की चर्चा , ऋषि मुनि दुवारा रचे गए ग्रन्थ आरण्यक कहा जाता है
- सामवेद तथा अर्थवेद का कोई आरण्य ग्रन्थ नहीं है .
- उपनिषद की संख्या मणि जाती है - 108
- प्रमुख उपनिषद मने जाते है - वृहदरन्यक , कठ , छान्दोग्य , मुण्डक ,
- भारत का आदर्श वाक्य सत्य मेव जयते लिया गया है - मुण्डक उपनिषद से .
- पुराणों से जानकारी मिलती है - प्राचीन शासक तथा राजवंश की क्रिया
- कलापों कीजानकारी .
- पुराणों की संख्या मानी जाती है -18 [ ब्रम्हा , मत्स्य , भागवत , शिव ,
वेद का अर्थ ज्ञान से है इससे हमें ज्ञान की प्राप्ति होती है मुख्यता वेद चार प्रकार के होते है
ऋगवेद ;-
ऋगवेद सबसे प्राचीन वेद है इसमें 10 मण्डल और 1028 सुत्त होते है .
गायत्री मन्त्र एवं असतो मा सद्गमय का उल्लेख ऋगवेद में मिलती है
ब्राहमण की उत्पत्ति सम्बन्धी मन्त्र पुरुष सूक्त में मिलता है इसमें चार वर्णों ब्राहमण , क्षत्रिय
ऋगवेद दुनिया का प्रथम धर्म ग्रन्थ है
ऋगवेद पद वाला वेद है
ऋगवेद का अर्थ
ऋगवेद वेदों में सबसे पहला वेद है इससे हमें सम्पूर्ण ज्ञान की प्राप्ति होती है इसके अन्तरगत
वायु चिकित्सा , हवं जल चिकित्सा आदि की जानकारी मिलती है भोगोलिक ज्ञान के साथ
इसमें देवता की स्तुति का भी ज्ञान मिलता है
महत्त्व ;- इसमें 10 मण्डल 1028 सूक्त है इसमें 11 जहाजर तक मन्त्र है ऋषि मुनि दुवारा
लिखित विभिन् छंद में लगभग 400 रचनाये है ऋगवेद में देवताओ की स्तुतिया मिलती है
इसमें अग्नि , वायु , जल , सूर्य , सभी देवी देवता की जानकारी इसमें है
यजुर्वेद ;-
यजुर्वेद में स्वर पाठ मंत्रो तथा वलि के समय अनुपालन हेतु नियमो का संकलन यजुर्वेद है
इसका पह करने वाले व्यक्ति अध्व्य्रू कहा जाता है
इसके दो भाग कृष्ण यजुर्वेद एवं शुक्ल यजुर्वेद है
यजुर्वेद में धार्मिक एवं सामाजिक जीवन की झाकी मिलती है
इस वेद में यज्ञो की सम्पूर्ण जानकारी मिलती है
यह गध और पध दोनों में लिखा गया है .
यह ग्रन्थ धर्मग्रन्थ कर्म काण्ड प्रधान है
सामवेद ;-
सामवेद का अर्थ इसे भारतीय संगीत का जनक कहा जाता है
सामवेद गीत संगीत प्रधान है
यह सबसे छोटा वेद है
यह सबसे छोटा वेद है लेकिन इसमें सभी वेदों का सार है
महाभारत में भी सामवेद का वर्णन किया गया है .
इसमें छंद , गति , लय , स्वर ताल , चिकित्सा सभी की जानकारी मिलती है
ऋगवेद को आधुनिक विज्ञान का युग भी कहा गया है
अथर्ववेद
चारो वेद में अर्थव्वेद सबसे अंतिम वेद है .
इस वेद में भूगोल , खगोल , वनस्पति , विद्दा , असंख्य ,जड़ी -बूटी से सम्बंधित है .
इसमें सबसे बड़ी से बड़ी बिमारी के बारे में वर्णन किया गया है
इसमें अनुष्ठान योग के बारे में जानकारी मिलती है
इसे व्रम्ह वेद भी कहा जाता है
इस वेद में जादू टोना - टोटका सबके बारे मे बात की गई है
उपवेद
ब्राहमण ग्रन्थ
वेदों की गधात्मक व्याख्या .
ऋगवेद - ऐतरेय , कोशितिकी
यजुर्वेद - शतपत , वाज स्नेही
सामबेद - पंचविष , ताडय
आर्थ्र्ववेद - गोपथ
आरण्यक ग्रन्थ -
ब्राम्हण ग्रन्थ के दार्शनिक पक्षों की निश्कार्शनातं व्याख .
7 आरण्य ग्रन्थ है
उपनिषद
इसमें दार्शनिक तत्वों का विवेचन है मुख्य उपनिषद 12 होते है
मुण्डक उपनिषद में ‘’ सत्यमेव जयते ‘’ लिया गया है .
जावाली उपनिषद में चारो आक्षयो का सर्वप्रथम उल्लेख है .
कठोपनिषद में नचिकेता एवं यम के बिच का उल्लेख है .
वेदांग
इनकी संख्या 6 है .
शिक्षा - स्वर विज्ञान .
कल्प - अनुष्ठान
व्याकरण -
निरुत - शब्द विज्ञान
छन्द
ज्योत्षी - खगोल शास्त्र .
महाकाव्य
रामायण व महाभारत दो प्रमुख महाकाव्य है
रामायण की रचना वाल्मीकि ने की , जिसमे मुलता ;-8800 श्लोक थे
महाभारत की रचना वेद व्यास ने की थी 8, 800 श्लोक थे और इसका नाम जय संहिता था .
पुराण
पुराणों की संख्या 18 थी और 18 ही उपपुराण है
मत्स्य पुराण सबसे प्राचीन है वायु पुराण से गुप्त के बारे में तथा विष्णु पुराण से श्रयो के विषय
षड्दर्शन
6 हिन्दू दर्शन पद्धतियो को षड्दर्शन कहा जाता है .
सांख्य दर्शन - कपिल मुनि
योग दर्शन - पंतजलि ऋषि
न्याय दर्शन - गोतम ऋषि
वेशेशिक दर्शन - उलूक कणाद
मिमासा - दर्शन - जेमिनी ऋषि
वेदान्त दर्शन - बादरायण का ब्रहापुत्र
1 .वेदों की संख्या कितनी है
ANS - 4
2 . वेदांग की संख्या कितनी है
ANS . 6
3 .उपनिषदों की संख्या कितनी है
ANS . 108
4 . पुराणों की संख्या कितनी है .
ANS . 18
5 . महाकाव्य की संख्या कितनी है .
ANS .2 रामायण / महाभारत
6 .बोध्य ग्रन्थ के त्रिप्तको की संख्या है
ANS - 3 [ विनय पीटक / सुतपिटक /अभिधम्य पीटक ]
7 . जातक कथाये कितनी है .
ANS - 549
8 . मिलिंद पांह के लेखाक है
ANS - नागसेन
9 . बुध्य चरित के लेखक है
ANS - अश्वघोष
10 . जैन ग्रन्थ में पूर्वा है
ANS - 14
11 . जैन अंग है
ANS - 11
12 . जैन ग्रन्थ कल्पसूत्र के लेखक है
ANS - भद्रबाहु .
13 .जैन ग्रन्थ परिशिष्ट पर्व के लेखक है
ANS - हेमचंद
14 . अर्थशास्त्र के लेखक है
ANS - कोटिल्य
15 . नीतिसार के लेखक है
ANS .कामन्द्ल ,शुक
16 .प्रथ्वी राज रासो के लेखक है .
ANS .चंदवरदाई
17 . प्रथ्वी राज विजय के लेखक है
ANS - जगनिक
18 . विक्रमाक्देव चरितम के लेखक है
ANS - बिल्हण
19 .हर्षचरित के लेखक है
ANS - बाणभट
20. मालविकाग्निमित्रम , अभिग्यानशाकुन्तलम , के रचना कार है
ANS - कालिदास
20 . मुद्राराक्ष ,देविचान्द्रगुप्त के रचनाकार है
ANS - विशाखदत .
21 प्रिय्दार्सिका , नागावंद के लेखक है.
ANS -हर्षवरदं
22 . लीलावती [ गणित ] के लेखक कोन है
ANS - भाष्कराचार्य
23 .सूर्य सिन्धांत [ खरगोन ] के लेखक है
ANS - आर्यभट
24 .पंच सिद्धांत के लेखक है
ANS -वरह महिर
25 .अम्रकोस [ कृषि ] के रचना कार
ANS - अमर सिंह
26 . मिताक्षर के लेखक है
ANS - विधानेश्वर
27 .हेरोडोटस के लेखक है
ANS -हिस्तोरिका
28 .मेगास्थानिक के लेखक है
ANS - इंडिका
29 . टाल्मी के लेखक है
ANS जियोग्राफिक
30 .पिल्नी के लेखक है
ANS - नेचुरल हिस्ट्री
दोस्तों यह पोस्ट भारतीय इतिहास के साहित्य स्त्रोत के बारे में सभी जानकारी को इस पोस्ट में रखा है जिससे आप इस टोपिक से सारे प्रश्नों को हल कर सके इस लिए हमने यह टोपिक को और सरल तरीके से बनाया है प्राचीन भारतीय इतिहास के साहित्य स्त्रोत Literary Sources of Ancient Indian History प्राचीन साहित्य स्त्रोत इतिहास जानने के साहित्यिक स्रोत की जानकारी को हम इस पोस्ट में रखेंगे
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